Monday, 14 November 2011

हिनदी कविता


मैंने तारों को देखा बहुत दूर 
जितना मैं उनसे
वे दिखे इस पल में
टिमटिमाते अतीत के पल
अँधेरे की असीमता में,
सुबह का पीछा करती रात में
यह तीसरा पहर
और मैं तय नहीं कर पाता 
क्या मैं जी रहा हूँ जीवन पहली बार
या इसे भूलकर जीते हुए दोहराए जा रहा हूँ
सांस के पहले ही पल को हमेशा !
क्या मछली भी पानी पीती होगी
या सूरज को भी लगती होगी गरमी
क्या रोशनी को भी कभी दिखता होगा अँधकार
क्या बारिश भी हमेशा भीग जाती होगी,
मेरी तरह क्या सपने भी करते होंगे सवाल नींद के बारे में
दूर दूर बहुत दूर चला आया मैं
जब मैंने देखा तारों को - देखा बहुत पास,
आज बारिश होती रही दिनभर
और शब्द धुलते रहे तुम्हारे चेहरे से
                              
                                                                                                 Mohan Rana


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